गुजरात विधानसभा चुनाव 2017 इन दिनों पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ हैं क्योंकि भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का गृह राज्य है और उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत इसी राज्य से हुए थी. इसके अलावा 2014 लोकसभा आम चुनाव में मोदी के द्वारा गुजरात को विकास के मॉडल के रूप में लिया गया था. यही कारण है कि यह राज्य पूरे देश में राजनीतिक सरगर्मियों का केंद्र बना हुआ है. भारत का यह एक ऐसा राज्य है जिसे बीजेपी का अजेय दुर्ग माना जाता है. जहां पिछले 22 साल से बीजेपी सत्ता पर काबिज है. जिसके सिंहासन को कांग्रेस हिला तक ही नहीं पाई. यही कारण है कि गुजरात विधानसभा चुनाव बीजेपी के लिए चुनौतीपूर्ण बनता जा रहा है.
इस चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने में पीछे नहीं हैं, जब कांग्रेस ने बीजेपी पर तंज कसते हुए कहा कि ‘विकास पागल हो गया है’ तो इसके जवाब में बीजेपी ने पलटवार में ‘मैं गुजरात छूं मैं विकास छूं’ के जवाब में दिया. राज्य में सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार गुजरात में करीब साढ़े चार करोड़ मतदाताओं को एक बार फिर से विकास के नए मुद्दों के साथ रिझाने की कोशिश में है. इसके लिए बीजेपी ने ऊंची जातियों (विशेषकर ब्राह्मणों और बनियों), अन्य पिछड़े वर्गों (विशेषकर कोल्ली), पटेलों और आदिवासियों का एक विस्तृत गणना के हिसाब से सीटों का वितरण किया है और एक बार फिर से गुजरात में अपना वर्चस्व को स्थापित करने की उम्मीद कर रहा है. लेकिन
बीजेपी के लिए समाज के अलग-अलग वर्गों के लोगों को केवल विकास के मुद्दे पर एक साथ लाना इतना आसान नहीं होगा है. इसलिए इस बार बीजेपी और राज्य की सत्ता के रास्ते में कई चुनौतियां है.
गुजरात कांग्रेस का बदलता नेतृत्व
पहली चुनौती, राहुल गांधी का नेतृत्व है, गुजरात में राहुल गांधी लोगों से जुड़ने का कोई भी मौका छोड़ना नहीं चाह रहे हैं. वह हर तरीका अपनाकर गुजरातियों में घुलमिल जाना चाहते हैं. जिसके लिए कभी वह मंदिर जाते नजर आ रहे, कभी वह नाचते-गाते, तो कभी वह गुजराती व्यंजनों का लुत्फ उठाते हुए नजर आ रहे है. इसके अलावा राहुल गांधी ने गुजरात कांग्रेस के नेताओं जैसे भरत सिंह सोलंकी, मोहन सिंह रथवा, सिद्धार्थ पेटल, अहमद पटेल,
शक्ति सिंह गोहेल, परेश धनानी और अर्जुन मोर्वदिया आदि पर काफी भरोसा जताया है. ये नेता रोज के रोज कई रैलियां कर रहे है लगभग सभी नेताओं को कांग्रेस ने जातीय समीकरण के आधार पर नेतृत्व सौंपा है और यह जातीय समीकरण कहीं न कहीं बीजेपी
की जीत में बहुत बड़ा रोड़ा है;
दूसरी चुनौती, मोदी और अमित शाह की जोड़ी केंद्र में जाने के बाद, गुजरात विधानसभा चुनाव की अगुवाई करने के लिए बीजेपी में एक बड़े नेता का अभाव हो गया है. मोदी 15 वर्षो में पहली बार राज्य में बीजेपी का चेहरा नहीं हैं. इसीलिए कांग्रेस को लगता है कि उनके पास बीजेपी को हराने का अच्छा मौका है, और पहली बार इस चुनाव में बीजेपी के पास कोई मुख्यमंत्री के लिए दमदार चेहरा नहीं है. हालांकि बीजेपी हमेशा अपनी पार्टी जातीय
समीकरणों से दूरी बनाने का दावा करती रही हैं, लेकिन इस बार पटेल समुदाय के नेता हार्दिक पटेल से मुकाबला और इस समुदाय के वोटरों अपनी ओर आकर्षित करने के लिए
उप-मुख्यमंत्री नितिन पटेल को मुख्यमंत्री पद के विकल्प के रूप में सोचना शुरू कर दिया है.
गुजरात में पाटीदार आरक्षण के मुद्दे पर नाराज हैं
तीसरी चुनौती, हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी एवं अल्पेश ठाकोर जैसे नए उभरते विपक्ष के खेमें के नेताओं से चुनौती. गुजरात में पाटीदार आरक्षण के मुद्दे पर नाराज हैं. 2 साल पहले हार्दिक पटेल की अगुवाई में शुरू हुए आंदोलन की आग ने बीजेपी की सत्ता को झुलसा दिया था. जिसके चलते आनंदीबेन पटेल को अपनी कुर्सी तक गंवानी पड़ गई थी. दूसरी ओर जिग्नेश मेवाणी, दलित राजनीति में नया उभरता हुआ चेहरा है और उनकी दलितों में काफी पकड़ है. गुजरात के कुल मतदाताओं में दलितों की तादाद 7.1 फीसदी और आदिवासियों की तादाद लगभग 15 फीसदी है. जिसमें अनुसूचित जाति के लिए 13 और अनुसूचित जनजाति के लिए 27 सीटें आरक्षित है. 2012 के विधानसभा चुनाव में इन दोनों समुदाय में कांग्रेस की अच्छी पकड़ थी, यही कारण है कि पिछले चुनाव में बनासकांठा, अरावली, साबरकांठा, नर्मदा, वडोदरा और कई जिले में कांग्रेस को 27 अनुसूचित जनजाति सीटों में से 16 और बीजेपी को 10 मिली थीं. जबकि अनुसूचित जाति की लिए 13 सीटें आरक्षित है जिसमें 3 सीटें कांग्रेस को और 10 बीजेपी को मिली थी.
दलित काफी नाराज हैं
इस बार गाय के मुद्दों पर ऊना में दलितों के साथ हुई मारपीट के बाद से दलित काफी नाराज हैं. इसलिए दलित और आदिवासी मतदाताओं को रिझाने के लिए दोनों दल काफी जोर लगा रहे यह दोनों समुदाय जिस भी दिशा में जायेगा उसके लिए गुजरात चुनाव
की राह थोड़ी सरल हो जिएगी;
व्यापरी वर्ग केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार से है खफा
चौथी चुनौती, गुजरात राज्य भारत में व्यापार का एक बड़ा केंद्र है. 2012 के विधानसभा चुनाव में, बीजेपी ने अहमदाबाद में 17 में से 15 सीटें, सूरत में 16 सीटों में से 15, वडोदरा की सभी पांच सीटें और राजकोट शहर में चार सीटों में से तीन सीटों पर जीत दर्ज की. इस बार व्यापारी वर्ग केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार से नाराज हैं. विमुद्रीकरण के बाद बढ़ती बेरोजगारी गुजरात के लोगों के लिए एक बहुत बड़ी समस्या बन गयी है. विमुद्रीकरण के कारण गुजरात घरेलू बिक्री में भी गिरावट का सामना कर रही है.
आवासीय संपत्तियां की खरीददारी अहमदाबाद जैसे शहरों में 90%, वड़ोदरा और सूरत में 30% की गिरावट आई है.
नोटबंदी के कारण, इन तीन शहरों अहमदाबाद, सूरत और वडोदरा में संपत्ति पंजीकरण में 63%, 74% और 62% की गिरावट देखी गई है. यहां तक कि राज्य कृषि विभाग ने कहा कि पिछले साल नवंबर में 12% बुवाई लगभग 3.96 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में हुए थी. जबकि हर साल इस माह में 33.08 लाख हेक्टेयर के बुवाई होती थी. हालांकि, इस साल भी पिछले साल की भरपाई नहीं हो पायी है. चाहे वह सूरत में हीरा उद्योग, या अहमदाबाद के कपड़ा उद्योग या राज्य के अन्य शहरों में और बहुत सारे औद्योगिक समूहों, सभी अभी भी नोट प्रतिबंध (विमुद्रीकरण ) के प्रभाव से उभर ही रहे थे कि केंद्र सरकार ने जीएसटी को लागू करके फिर से इस वर्ग की कमर थोड़ दी. विपक्षी दल इस असंतोष का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे है. उदाहरण के रूप में, सूरत वस्त्र उद्योग पर उगता है, और एक व्यापारिक समुदाय का घर है जो पारंपरिक रूप से भाजपा का समर्थन करता है. पिछले साल के मुकाबले में, सत्तारूढ़ पार्टी के साथ इनका मोहभंग होने की संभावना है, जो अंतिम निर्णय को प्रभावित कर सकती हैं. और यदि व्यापरी वर्ग का वोट बैंक शिफ्ट होगा तो ये बीजेपी की जीत में बहुत बड़ा मील का पत्थर साबित हो सकता है.
मुसलमानों का वोट बैंक
और अंत में, गुजरात विधानसभा में बीजेपी के जीत के समक्ष अंतिम चुनौती मुस्लिम मतदाता हैं. गुजरात में मुसलमानों की कुल आबादी लगभग लगभग 10 प्रतिशत है. जोकि कम से कम 30 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकते
हैं. कांग्रेस ने छह मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है. भारुची और सुरती मुसलमानों में बीजेपी को लेकर बहुत नाराज है जो एक बड़ी चुनौती है.
हालांकि बीजेपी ने इन सभी रुकावटों से पार आने की लगातार कोशिश कर रही है जिसके लिए वह लगातार कांग्रेस और नए उभरते हुए नेताओं हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी एवं अल्पेश ठाकाेर निशाना साध रही है. हार्दिक पटेल की एक कथित सीडी कांड से बीजेपी कहीं न कहीं फायद उठाने की भरपूर कोशिश कर रही है. वहीं दूसरी ओर आदिवासियों के क्षेत्रों में सड़कें और पानी की उचित व्यवस्था करके इनको अपने पक्ष में करने में लगी
हुए. इस चुनावों में बीजेपी अपनी जीत को सुनिश्चित करने के लिए पूरा जोर लगा रही है. बीजेपी के समक्ष ये सारी चुनौतियों हैं. जिसके कारण यह चुनाव इस बार इतना आसन नहीं होगा.