नई दिल्ली. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार को एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम के दौरान ऐसा बयान दिया है, जिसने देश में हिंदी और भारतीय भाषाओं को लेकर चल रही बहस को फिर हवा दे दी है। उन्होंने कहा कि वो दिन दूर नहीं जब भारत में अंग्रेज़ी बोलने वालों को शर्मिंदगी महसूस होगी।
पुस्तक विमोचन के मौके पर दिया बड़ा बयान
शाह आईएएस अधिकारी आशुतोष अग्निहोत्री की किताब ‘मैं बूंद स्वयं, खुद सागर हूं’ के लॉन्च इवेंट में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि भारत को भारतीय भाषाओं के जरिए ही समझा जा सकता है, ना कि किसी विदेशी भाषा के माध्यम से। यदि हम अपनी भाषाओं को नहीं अपनाते, तो हम सच्चे अर्थों में भारतीय नहीं बन सकते। हमारी संस्कृति, धर्म, इतिहास सब कुछ भारतीय भाषाओं से ही जुड़ा है।
भारतीयता की असली पहचान भाषाओं में
शाह ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि आने वाला समय भारतीय भाषाओं का होगा, जहां लोग गर्व के साथ हिंदी, तमिल, मराठी, बांग्ला जैसी भाषाएं बोलेंगे, उन्हीं में सोचेंगे, शोध करेंगे और समाधान निकालेंगे।
हमारा लक्ष्य है कि हम अपनी भाषाओं में ही देश चलाएं और दुनिया का नेतृत्व करें।
हिंदी थोपने के आरोपों पर इशारों में जवाब
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हाल ही में केंद्र सरकार को तमिलनाडु की डीएमके सरकार से हिंदी थोपने के आरोपों का सामना करना पड़ा है। शाह ने इस पर सीधे टिप्पणी तो नहीं की, लेकिन यह जरूर कहा कि “भारत की संपूर्णता को अधूरी विदेशी भाषाओं से नहीं समझा जा सकता।”
कौन बने संपर्क भाषा? सवाल बरकरार
हालांकि, अमित शाह ने यह नहीं बताया कि बहुभाषी भारत में कॉमन लिंक लैंग्वेज (संपर्क भाषा) कौन-सी होनी चाहिए। यह सवाल अब भी बरकरार है कि क्या हिंदी को इसका दर्जा दिया जाएगा या सभी भाषाओं को बराबरी से देखा जाएगा।