चीन इस वर्ष भी पश्चिमी मीडिया के लिए ड्रैगन बना रहा और चीन लगभग वर्ष भर इसके कई वाजिब कारण भी मुहैया करवाता रहा. दुनिया अभी चीन के ओबोर नीति को समझ ही रही थी तब तक चीन के सर्वेसर्वा शी जिनपिंग ने अपनी पार्टी के अक्टूबर अधिवेशन में अपने तीन घंटे तेईस मिनट के लम्बे भाषण में चीन की वैश्विक और क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं को नए सिरे से रेखांकित कर दिया. यकीनन चीन आने वाले वर्षों में भी एक प्रमुख निर्णायक विश्व शक्ति बना रहेगा. अपनी आर्थिक व्यवस्था एक हद तक सुदृढ़ और स्थिर कर लेने के पश्चात् अब चीन विश्व की सर्वोच्च शक्ति बनने की होड़ में है. विवाद की दृष्टि से दक्षिण चीन सागर में इस वर्ष हिलोर कम रही पर यह शांत कभी नहीं रहा. चीन ने विश्व के लगभग सभी सामरिक क्षेत्रों में भारी निवेश किया है और एशिया-हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में अपनी भौतिक सम्बद्धता काफी मजबूत कर ली है.
रूस की ऐतिहासिक महत्वाकांक्षा और उत्तर कोरिया का खतरा
इधर रूस में पुतिन पिछले सत्रह सालों से एक निर्णायक पद पर बने हुए हैं और पुतिन का रूस अब अपनी ऐतिहासिक महत्वाकांक्षा के आगोश में है, जिसमें उसने चीन, सीरिया पाकिस्तान और उत्तर कोरिया का सामरिक समर्थन भी जुटा लिया है. उत्तर कोरिया लगातार प्रतिबंधों के बीच में भी धमकियां देता रहा और अपने हथियारों का परीक्षण करते हुए तनाव का माहौल बनाता रहा. यही कारण है कि ट्रम्प का अमेरिका सम्पूर्ण एशिया-हिन्द-प्रशांत क्षेत्र को इंडो-पैसिफिक कह भारत की वैश्विक भागीदारी बढ़ाने की वकालत कर रहा है. नवम्बर के ईस्ट एशिया समिट में बाकायदा क्वाड (चतुष्क) देशों की चर्चा हुई जिसमें अमेरिका के साथ जापान, आस्ट्रेलिया और भारत शामिल है.
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हाल की अमेरिका द्वारा जारी की गयी अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा कार्ययोजना में भी भारत को एक प्रमुख विश्व शक्ति मानते हुए चतुष्क (क्वाड) की चर्चा की गयी. शिंजो अबे की पकड़ जापान में मजबूत हुई है और वे जापान को एक बार फिर सामरिक और सैन्य दृष्टिकोण से सक्रीय एवं मजबूत बनाने की दिशा में प्रयासरत हैं. चीन में शी जिनपिंग घरेलू राजनीति में और मजबूत हुए हैं और वे भी चीन को विश्व शक्ति बनाने को आतुर हैं. यही रूस के पुतिन की स्थिति है. 2017 का एशिया एक शांत किन्तु गहरे तनाव में है.
भारत के लिए उत्साहजनक साल
भारत के लिहाज से यह वर्ष उत्साहजनक रहा. वैश्विक हलकों में इसकी चर्चा लगातार होती रही. खाद्य सुरक्षा, कृषि, पर्यावरण के मुद्दों पर जहां इसे सभी विकासशील देशों का समर्थन मिला. वहीं एनएसजी सदस्यता, सुरक्षा परिषद सदस्यता के मोर्चे पर गतिरोध बना रहा. बाकी अन्य सभी विषयों पर अमेरिका लगातार और काफी खुलकर भारत के समर्थन में बयान जारी करता रहा. यों तो हर वर्ष ही भारत-चीन के सैनिकों में छिटपुट गतिरोध होते हैं, किन्तु इस वर्ष तिब्बत-भूटान के एक कोने से लगा डोकलम विवादों में रहा. तनातनी एक समय इतनी बढ़ी कि कुछ युद्ध जैसे हालात पैदा हो गए किन्तु भारत इस बार रक्षात्मक नहीं रहा और अंततः चीन ने पैतरा बदल लिया. चीन के द्वारा जबरन उत्पन्न की गयी इस गतिरोध में आखिरकार उसे भी पता लगा कि भूटान के साथ-साथ दुनिया की बड़ी शक्तियां और खासकर अमेरिका भारत के साथ खड़े हैं. जैसे ट्रम्प भारत की वैश्विक भूमिका को निभाते हुए देखना चाहते हैं ठीक वैसे ही भारत ने अपने उत्तर-पूर्व के पड़ोसियों के साथ मेलजोल बढ़ाया है और भारत की एक्ट ईस्ट नीति में म्यांमार एक प्रमुख सहयोगी राष्ट्र के तौर पर उभरा है.
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रोहिंग्या त्रासदी
किन्तु पड़ोस में वह म्यांमार ही है जहां से इस वर्ष विश्व की सर्वाधिक चर्चित त्रासदी रोहिंग्या शरणार्थी समस्या के तौर पर सामने आया. भारत ने इस पर एक सोची समझी कूटनीतिक अकर्मण्यता दिखाई, पड़ोसी देश बांग्लादेश थोड़ा नाराज भी रहा और अंततः यह विवाद थमा. भारत के सम्बन्ध अपने पड़ोसियों से इस वर्ष खिंचे ही रहे बस इसमें अफ़ग़ानिस्तान और भूटान अपवाद रहे. यों तो पाकिस्तान को छोड़कर कमोबेश सभी पड़ोसी देशों के छोटे-बड़े प्रतिनिधियों की भारत यात्रा समय-समय पर हुई किन्तु पारस्परिक संबंधों में वह अपेक्षित ऊष्मा नदारद रही.
भारत को निश्चित ही श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश, मालदीव और पाकिस्तान से अपने सम्बन्ध सुधारने की कोशिश करनी होगी क्यूंकि बड़ी तेजी से चीन इन पड़ोसियों में अपने भारी निवेश से एक गुडविल बनाता जा रहा है. नेपाल ने ऐतिहासिक रूप से नए संविधान के अनुरूप शांतिपूर्ण ढंग से एक साथ केंद्र और राज्य के चुनाव संपन्न करवा लिया और अंततः तीन दशकों के बाद उसे एक स्थिर सरकार मिली है. मालदीव ने हाल ही में चीन से मुक्त व्यापार समझौता संपन्न किया और श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह पर आख़िरकार चीन का निर्णायक स्वामित्व हो गया. चीन ने पाकिस्तान के साथ मिलकर ग्वादर बंदरगाह भी विकसित किया और पाक-अधिकृत कश्मीर और चीन-अधिकृत अक्साई चिन पर पाकिस्तान-चीन के द्वारा पारस्परिक व्यापारिक गलियारा विकसित किया जिससे भारत का पारम्परिक ऊर्जा के भंडार मध्य एशिया के देशों के साथ भौतिक संपर्क ही अवरुद्ध हो गया.
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ग्वादर और चाबहार
भारत ने अपनी तैयारियों में तेजी लाते हुए आखिरकार ईरान के साथ सहयोग करते हुए ग्वादर के निकट ही सिस्तान-बलूचिस्तान प्रान्त में उन्नत चाबहार बंदरगाह विकसित कर लिया और अब यह संचलन में भी आ गया है. चाबहार एक कूटनीतिक उपलब्धि भी है क्योंकि इससे भारत का न केवल मध्य एशिया के देशों के साथ पुनः भौतिक संपर्क स्थापित हो सकेगा अपितु भारत की सामरिक पहुंच ईरान-अफ़ग़ानिस्तान-रूस होते हुए यूरोप तक हो जाएगी. हिन्द महासागर में भारत अमेरिका के साथ डियागो गार्सिआ पर अपनी सामरिक पकड़ बनाये हुए है, हालांकि इस वर्ष ब्रिटेन के अस्थाई स्वामित्व वाले इस मारीशस के द्वीप पर ब्रिटेन और मारीशस के बीच तनातनी भी रही. मामला यूएनओ में पहुंचा और भारत ने भू-राजनीतिक स्थिति को देखते हुए मारीशस के पक्ष में मतदान किया. यहां कूटनीतिक चुनौतियाँ सचमुच आसान नहीं हैं. पीएम मोदी की विदेश यात्राओं में यूरोप के देश प्रमुखता से रहे, यथा-जर्मनी, स्पेन, रूस, फ़्रांस, पुर्तगाल और नीदरलैंड. इसके अलावा 2017 में मोदी फिलीपींस, चीन, श्रीलंका, कजाखस्तान, अमेरिका और म्यांमार की यात्रा पर रहे. सर्वाधिक चर्चित यात्रा मोदी की इजरायल यात्रा रही क्यूंकि यह यात्रा एक कूटनीतिक बदलाव का द्योतक यात्रा रही.
पढ़ें पहला भाग : अलविदा 2017 : वैश्विक मीडिया ने घर-घर पहुंचाई विश्व राजनीति और अन्य सुर्खियां
संयुक्त अरब अमीरात, बांग्लादेश, आस्ट्रेलिया, नेपाल, श्रीलंका, फलस्तीन, मारीशस, यमन, अफ़ग़ानिस्तान, भूटान के राष्टध्यक्षों ने भारत की इस वर्ष यात्रा की और जापान की शिंजो अबे की यात्रा इस वर्ष विशेष सुर्ख़ियों में रही. भारत ने इस वर्ष कई सम्मेलनों में भी हिस्सा लिया किन्तु सार्क और नैम के बैठक ठिठके ही रहे और यकीनन इसके कूटनीतिक निहितार्थ निकाले गए.
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…और अंत में
नए वर्ष का विश्व जहां जेरुसलम और उत्तर कोरिया में उलझा रहेगा वहीं एक आशा ही है कि संभवतः अगले वर्ष दुनिया के शक्तिशाली देश ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों से लड़ने की दिशा में कुछ ठोस कदम उठा सकें. 2017 की एक खास बात यह भी रही कि अंततः वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में मांग और पूर्ति के प्रक्रियाओं में तेजी आयी और विश्व-व्यापार को पटरी पर आने में मदद मिली. अमेरिकी अर्थव्यवस्था का सुधार विश्व में एक आर्थिक आशावादिता जगाता है. नया वर्ष मोदी सरकार के इस कार्यकाल आख़िरी वर्ष होगा और सरकार अपने सभी वैश्विक और क्षेत्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने का प्रयास करेगी. पिछले सालों की सक्रियता से दुनिया को यह सन्देश तो अवश्य ही पहुंचा है कि भारत अपनी वैश्विक भूमिकाओं के लिए तैयार है. भारत ने यकीनन वे क्षेत्र भी स्पर्श किये हैं जो एक अरसे अछूते रहे और खासकर अमेरिका के साथ संबंध यकीनन और बेहतर हुए हैं. विदेश नीति के सर्वाधिक विश्वसनीय सिद्धांत सततता व परिवर्तन के हिसाब से और राष्ट्र के दूरगामी हितों को देखते हुए भारत को ईरान, इजरायल, रूस और चीन के साथ अपने संबंधों को भी सम्हालते रहना होगा.
कहना होगा कि भारत को अपनी वैश्विक भूमिका के साथ अपनी क्षेत्रीय भूमिका नज़रअंदाज नहीं करनी चाहिए. खासकर अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों को सुधारने की दिशा में एकतरफा ही सही पहल शुरू कर देनी चाहिए. नैम और सार्क को पुनर्जीवित करने का प्रयास भारत की बार्गेनिंग शक्ति को उभारेगा और इसे अपनी वैश्विक पहचान बनाने में मदद देगा.
लेखक अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार हैं.