नई दिल्ली. Supreme Court on Rohingya: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक बड़ा फैसला सुनाते हुए दिल्ली में अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों को देश में बनाए रखने की मांग को ठुकरा दिया। यह याचिका वरिष्ठ वकील कोलिन गोंजाल्विस और प्रशांत भूषण द्वारा दायर की गई थी, जिसमें दावा किया गया था कि म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय पर अत्याचार हो रहे हैं और इसलिए उन्हें भारत में शरण मिलनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट रुख: India is for Indians
न्यायमूर्ति सूर्यकांत दीपांकर दत्ता और कोटेश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि भारत में निवास का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को है। विदेशी नागरिकों के लिए Foreigners Act के तहत ही व्यवहार किया जाएगा। कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि भारत ने Refugee Convention 1951 पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, इसलिए देश पर रोहिंग्या को शरण देने की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है।
UNHCR Status का कोई प्रभाव नहीं
याचिकाकर्ताओं ने यह तर्क दिया कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (UNHCR) ने Rohingya को “शरणार्थी” का दर्जा दिया है। लेकिन केंद्र सरकार ने साफ कहा कि UNHCR की मान्यता भारत में वैधानिक रूप से बाध्यकारी नहीं है क्योंकि भारत ने Refugee Status Convention पर हस्ताक्षर नहीं किया है।
National Security को बताया गया मुख्य मुद्दा
Solicitor General तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि Rohingya की मौजूदगी देश की internal security के लिए खतरा है। उन्होंने यह भी बताया कि इससे पहले भी Supreme Court ने Assam और Jammu-Kashmir में Rohingya को डिपोर्ट न करने की याचिकाएं खारिज की हैं।
Article 21: अधिकार, लेकिन सीमाएं
कोर्ट ने माना कि हर व्यक्ति को भारत में जीवन का अधिकार (Right to Life) संविधान के Article 21 के अंतर्गत प्राप्त है, चाहे वह विदेशी ही क्यों न हो। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि कोई विदेशी भारत में बिना वैध दस्तावेजों के स्थायी रूप से रह सकता है। Foreign Nationals को कानून के अनुसार ही नियंत्रित किया जाएगा।
अगली सुनवाई 31 जुलाई को तय
इस मामले की अगली सुनवाई 31 जुलाई 2025 को होगी। तब तक केंद्र सरकार Rohingya मुसलमानों को deportation process के तहत म्यांमार वापस भेजने की कानूनी कार्रवाई जारी रखेगी।