नई दिल्ली. देश की सरकारी संस्थाओं द्वारा की जाने वाली गेहूं की खरीद इस चालू विपणन सत्र 2021-22 में 15 साल के निचले स्तर पर आ सकती है. इससे पहले इससे कम खरीद 2007-08 के दौरान की गई थी जो 111.28 लाख मीट्रिक टन थी. वहीं इस बार सरकार द्वारा गेहूं की खरीद का आंकड़ा 195 लाख मीट्रिक टन के आसपास ही सिमट सकता है.
भारत में ज्यादातर किसान किसान अप्रैल से मई के बीच ही गेहूं को बाजार में बेचते हैं, हालांकि सरकारी तकनीकी रूप से गेहूं की खरीद जून तक करती है. इसके अलावा, यह पहली बार होगा कि इस साल के दौरान खरीदा गया गेहूं पिछले विपणन सीजन की शुरुआत में उपल्बध सार्वजनिक स्टॉक से कम है. भारत में हमेशा ये देखा जाता है कि नई खरीद शुरुआती उपल्बध स्टॉक से ज्यादा होती है. इससे पहले 2006-07 और 2007-08 में ऐसा हुआ था जब शुरुआती उपल्बध स्टॉक नई खरीद से कम था.
राज्य और केंद्र शासित प्रदेश | खरीदे गए गेहूं की मात्रा (मीट्रिक टन में) | एमएसपी मूल्य (करोड़ रुपये में) |
पंजाब | 89,10,562 | 17,954.78 |
हरियाणा | 37,24,040 | 7,503.94 |
उत्तर प्रदेश | 1,47,554 | 297.32 |
मध्य प्रदेश | 34,04,248 | 6,859.56 |
बिहार | 1,704 | 3.43 |
राजस्थान | 749 | 1.51 |
उत्तराखंड | 907 | 1.83 |
चंडीगढ़ | 3,165 | 6.38 |
गुजरात | 6 | 0.01 |
हिमाचल प्रदेश | 2,225 | 4.48 |
जम्मू और कश्मीर | 232 | 0.47 |
कुल | 1,61,95,391.14 | 32,633.71 |
2021-22 में सरकारी संस्थाओं द्वारा रिकार्ड मात्रा में गेहूं की खरीद की गई थी. 2021-22 में कुल 433.44 लाख टन गेहूं की खरीद की गई थी.
क्या है कारण
फरवरी में शुरू हुए रूस-यूक्रेन के मध्य युद्ध के बाद से अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की मांग एकदम से बढ़ गई. बढ़ती मांग के बीच 2021-22 में, भारत ने रिकॉर्ड 78 लाख टन गेहूं का निर्यात किया. रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच चल रहे युद्ध से गेहुं की मांग बढ़ी है, क्योंकि दोनों देशों का वैश्विक गेहूं निर्यात में 28 फीसदी से अधिक का योगदान है. युद्ध कते कारण हि अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतें आसमान छू रही हैं और भारतीय अनाज की मांग में और वृद्धि हुई है.
वर्ष | शुरूआती स्टॉक (लाख मीट्रिक टन में) | खरीद (लाख मीट्रिक टन में) | स्टॉक से निकला |
2006-07 | 20.09 | 92.26 | 118.75 |
2007-08 | 47.03 | 111.28 | 122.47 |
2017-18 | 80.59 | 308.24 | 253 |
2018-19 | 132.31 | 357.95 | 316.47 |
2019-20 | 169.92 | 341.32 | 271.89 |
2020-21 | 247 | 389.92 | 363.9 |
2021-22 | 273.04 | 434.44 | 505.55 |
2022-23 | 189.9 | 195* | – |
इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं का वायदा भाव 400 डॉलर प्रति टन के आसपास चल रहा है जो एक साल पहले 270 डॉलर के आसपास था. इस समय निर्यात किये जाने वाला भारतीय गेहूं लगभग 350 डॉलर या 27,000 रुपये प्रति टन फ्री-ऑन-बोर्ड (यानी शिपिंग के समय) पर निर्यात हो रहा है जो कि भारत सरकार द्वारा घोषित 2 हजार 015 रुपये प्रति क्विंटल से काफी अधिक है. इस समय भारत सरकार 2,015 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गेहूं की खरीद कर रही है.
कम उत्पादन
देश में फरवरी के मध्य में, केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने भारत की 2021-22 फसल (2022-23 के दौरान विपणन) का आकार 1 हजार 113 लाख टन होने का अनुमान लगाया था, जो कि पिछले वर्ष के 109.59 मिलियन टन के उच्च स्तर को भी पार कर गया. फरवरी में कृषि मंत्रालय ने कहा था कि “वर्ष 2021-22 के दौरान गेहूं का कुल उत्पादन रिकॉर्ड 111.32 मिलियन टन अनुमानित है. यह विगत पांच वर्षों के 103.88 मिलियन टन औसत उत्पादन की तुलना में 7.44 मिलियन टन अधिक है.” लेकिन मार्च के दूसरे पखवाड़े में जब दाना फूल रहा था, जिसमें गुठली अभी भी स्टार्च, प्रोटीन और अन्य शुष्क पदार्थ जमा कर रही थी के दौरान हुई तापमान में अचानक वृद्धि ने पैदावार पर असर खासा असर डाला. जिसके चलते मध्य प्रदेश को छोड़कर अधिकांश गेहूं उगाने वाले क्षेत्रों में जहां फसल मार्च के मध्य तक तैयार हो जाती है वहां पर किसानों ने प्रति एकड़ पैदावार में 15 से लेकर 20 फिसदी तक की गिरावट दर्ज की.
क्या है अन्य कारण
रूस और यूक्रेन के बीच लंबे खींच रहे युद्ध के बीच अंतरराष्ट्रीय बाजार में लगातार बढ़ती मांग के कारण भारत के कई हिस्सों में खुले बाजार में गेहूं की कीमतें न्यून्तम समर्थन मूल्य को भी पार कर गई हैं. इसके पिछे का तर्क ये है कि बंदरगाहों की दूरी जितनी कम होगी, निर्यातक/व्यापारी वहां पर गेहूं के लिए और अधिक दामों का भुगतान करेंगे. जिससे वे आसानी से निर्यात कर सकें और ज्यादा मुनाफा कमाया जा सके.
लगातार आ रही खबरों के अनुसार देश के सबसे बड़े उत्पादक राज्यों पंजाब और हरियाणा में जहां राज्य सरकारें मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में 0.5 से लेकर 1.6 फीसदी की तुलना में 6 फिसदी तक बाजार शुल्क वसूलती हैं, वहां भी आटा मिल मालिकों ने किसानों को एमएसपी से 50 से लेकर 100 रुपये तक का अधिक भुगतान कक गेहूं को खरीदा है. इसके पिछे का सबसे बड़ा कारण ये है कि व्यापारियों और मिल मालिक को अभी कीमतों के और बढ़ने की उम्मीद है जिसके चलते वे स्टॉक कर रहे हैं. इसके अलावा जो बड़े संसाधन संपन्न किसान हैं वो भी अपनी फसल रोक रहे हैं.
क्या कह रही है सरकार
4 मई को एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग (डीएफपीडी) के सचिव, सुधांशु पांडे ने कहा कि “अनाज की कुल अधिशेष उपलब्धता के साथ भारत खाद्य क्षेत्र में एक सुखद स्थिति में है और स्टॉक में अगले एक साल के लिए आवश्यक न्यूनतम सीमा से अधिक अनाज रहने की उम्मीद है”. पांडे ने कहा कि “आने वाले वर्ष में कल्याणकारी योजनाओं की आवश्यकता को पूरा करने के बाद, 1 अप्रैल, 2023 को, भारत के पास 80 लाख मीट्रिक टन गेहूं का भंडार होगा, जो कि न्यूनतम आवश्यकता 75 लाख मीट्रिक टन से कहीं अधिक है. भले ही उत्पादन वित्त वर्ष 2023 के शुरुआती अनुमान 11.1 करोड़ टन से कुछ कम 10.50 करोड़ टन होने की उम्मीद हो, भारत में गेहूं आवश्यकता से अधिक होगा.”
कहां जाता है सबसे ज्यादा गेहूं
भारत में सबसे ज्यादा गेहूं का उपयोग सार्वजनिक वितरण प्रणाली, मध्याह्न भोजन और अन्य नियमित कल्याण योजनाओं के लिए किया जाता है, जिनकी वार्षिक गेहूं की आवश्यकता लगभग 260 लाख मीट्रिक टन है. लेकिन पिछले दो वर्षों में प्रधान मंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना योजना (2020-21 में 103 लाख मीट्रिक टन और 2021-22 में 199 लाख मीट्रिक टन है.
2006-07 और 2008 के उदाहरण
इससे पहले ये कहना उचित नहीं होगा कि गेहूं की कीमतों में अभी और भी मजबूती आएगी और 2006-07 और 2007-08 में जो हुआ वह फिर से शुरू होगा. 2006-07 से लेकर 2008 की अवधि में भी, दुनिया भर में खाद्यानों की कीमतों में उछाल देखने को मिला था और उत्पादन में कमी देखी गई, जिससे कम खरीद हुई था और इसके चलते स्टॉक में भी कमी देखने को मिली थी.
चावल से हो सकती है भरपाई
हालांकि हो रही गेहूं की कमी को पूरा करने के लिए चावल के रिकार्ड स्टॉक का सहारा लिया जा सकता है, जो कि 1 अप्रैल को 550 लाख मीट्रिक टन से था. ये 136 लाख मीट्रिक टन के आवश्यक बफर के चार गुना से भी अधिक है.