शिमला. भले ही केंद्र सरकार ने जिला परिषद सदस्यों से वित्तीय शक्तियां छीन ली हों. लेकिन अपने अधीनस्थ पंचायत प्रधानों के साथ समन्वय स्थापित कर विकास कार्यों के लिए पैसों की किसी भी तरह की कमी नहीं है. यह सदस्य की क्षमता पर निर्भर करता है कि क्षेत्र विकास के लिए सरकार व विभाग के साथ किस तरह तालमेल बैठा कर योजनाओं को धन उपलब्ध करवाएं. यूं जिला परिषद के बजट में कैंची चलने से एक साल तो बिना फंड के ही रहा. लेकिन दूसरे साल राज्य सरकार द्वारा फंड मिलने के बाद विकासात्मक कार्य उसी गति से चल रहे है.
जिला सोलन के कंडाघाट श्रीनगर वार्ड की जिला परिषद सदस्य अमृता कश्यप ने कहा कि केंद्र से कोई सीधे फंड मिला नहीं, राज्य सरकार ने प्रति सदस्य 10 लाख 80 हजार रुपये दिए. मगर खुद ही सोचिए 17 पंचायतों में यह फंड वितरित होने पर कितना-कितना आया होगा. पेश है अमृता से बातचीत के मुख्य अंश…
वित्तीय शक्तियां तो नहीं है, तो आप योजनाओं के लिए पैसे का प्रावधान कैसे करते हो?
केंद्र से मिलने वाला सारा फंड अभी सीधा प्रधानों के पास आ रहा है. क्षेत्र के लिए बनाई गई योजनाओं को लेकर हम प्रधानों के साथ बैठक कर उन्हें बताते है कि योजना का लाभ संबधित पंचायत वासियों को ही होगा. ऐसे में पंचायतों से फंड जनरेट कर विकास योजनाओं के लिए धन का प्रावधान किया जा रहा है. विभागीय व राज्य सरकार से भी मैं सीधा संपर्क कर धन की व्यवस्था कर रही हूं. यही वजह है कि मेरे वार्ड में लगातार विकास कार्य चल रहे है.
क्या आप चाहेंगे कि पहले की तरह वितीय शक्तियां मिले?
14वें वित्तायोग में केंद्र ने जिला परिषद के लिए फंड का प्रावधान नहीं किया है. जबकि पहले 50 प्रतिशत जिला परिषद, 30 प्रतिशत पंचायत समिति सदस्य और 20 प्रतिशत फंड का प्रावधान प्रधानों के लिए किया गया था. जो फंड अब शत-प्रतिशत प्रधानों के पास जा रहा है. राज्य सरकार ने अपने स्तर पर प्रोविजन तैयार किया है. जिसके बाद कहीं जाकर पूरे प्रदेश के जिला परिषद सदस्यों को 42 करोड़ रुपये मिले हैं. नई सरकार बनने पर फंड का मामला उठाया जाएगा. वित्तीय शक्तियों का मामला को-ऑर्डिनेशन कमेटी बनाकर केंद्र के समक्ष रखा जाएगा.
दो साल में आपकी उपलब्धियां क्या रही?
मेरे वार्ड में 17 पंचायतें है, पंचायत की छोटी बड़ी जरूरत के मुताबिक कार्य करवाए गए. चायल में ट्रांसफार्मर भी लगाए गए. ज्यादातार कार्य लिंक रोड के हुए. पेयजल के लिए हैंडपंप सिंचाई व्यवस्था भी कई गई. गाइड लाइन्स के मुताबिक जितना हो सका काम करवाया.
अपने वार्ड के लिए आपका विज़न?
महिला होने के नाते मैं चाहती हूं कि पंचायतों की ग्रामीण महिलाएं खुल कर सामने आए. डर कर काम नहीं करें. खास कर जो महिला प्रधान है, वह बिना किसी दबाव आकर निडर होकर कार्य करें. अपने आगामी कार्यकाल में जितना हो सकेगा महिलाओं के लिए योजनाएं लाउंगी जिससे वह आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से सशक्त हो सके. हाल ही में हमने महिलाओं के लिए कई शिविर लगाएं है. जिसके माध्यम से उन्हें आचार, चटनी, जूट के बैग बनाने इत्यादि सिखाए गए हैं. साथ ही उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया जाता रहा है.
पंचायतीराज व्यवस्था में कोई परिवर्तन चाहती है?
जिला परिषद सदस्यों को पंचायतों में आने जाने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. सरकार कुछ ऐसा प्रावधान करना चाहिए कि हमें बैठकों में जाने या क्षेत्र निरीक्षण के लिए अधिकारियों की तर्ज पर टीए डीए दिया जाए. या कुछ ऐसी व्यवस्था की जाए की हमें प्रति किलो मीटर हिसाब से टैक्सी भाड़ा मिले. अभी तो अपनी जेब से ही खर्च करना पड़ता है.
राजनीति में कैसे आईं?
मैं एमएससी, बीएड हूं. टीचिंग मेरा शौक है. मेरी सास बीडीसी अध्यक्ष रही हैं. जब कंडाघाट श्रीनगर वार्ड में जिला परिषद की सीट महिला रिजर्व आई तो परिवार ने मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया, जिसके बाद मैं चुनाव लड़ी और जीती भी. मैं बेहद खुश हूं कि मुझे समाज सेवा का मौका मिल रहा है.